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लोक देवता बाबा रामदेव जी || Lok Devta Baba Ramdev ji

 

 

राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव 

|| Lok Devta Ramdev ji 

 


भारत वर्ष का इतिहास देवी-देवताओं के चमत्कारों से भरा पड़ा है। यही कारण है कि भारत में विश्वास यहां के आमजन के सिर चढक़र बोलता है। भारत विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय एवं जातियों का देश है। यहां विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय के अपने-अपने देवी देवता, पीर पैगम्बर एवं औलिया हुए है। सभी धर्मों के अपने पूजा स्थल एवं इबादतगाह, ऐतिहासिक गाथाओं और उनके अनुयायियों की भावना के केन्द्र बने हुए है लेकिन एक ऐसा महापुरुष  जिसने जाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊंच नीच, अमीरी-गरीबी का भेद मिटाकर सबको मानवता, भाईचारे एवं समानता का संदेश दिया। उसी महापुरुष को आज लाखों हिन्दु बाबा रामदेव तथा मुसलमान बाबा रामसा पीर के नाम से एक लोकदेवता के रूप में श्रद्धा के साथ उनकी समाधि पर सिर नवाकर अपने जीवन को धन्य करते है।

पश्चिमी राजस्थान के जिले जैसलमेर के पोकरण उपखण्ड मुख्यालय से करीब 12 किमी उत्तर की तरफ विख्यात गांव रामदेवरा स्थित है। जिसका दूसरा नाम रुणीचा भी है। बाबा के नाम से प्रसिद्ध रामदेव मंदिर व यहां की बावड़ी अपने चमत्कारों(परचों) से देशभर में प्रसिद्ध है। यहां भादवा मेले में हर साल लाखों की संख्यां में श्रद्धालु पैदल व विभिन्न साधनों से आते है और बाबा की समाधि के दर्शन कर अपनी मन्नत पूरी करते है। इस पवित्र धाम पर प्रतिवर्ष भादवा सुदी दूज से एकादशी तक लगने वाले अंतरप्रांतीय मेले में राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कलकता, मद्रास, बेंगलोर, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली आदि प्रांतों से लाखों यात्री यहां आकर बाबा की समाधि के दर्शन करते है और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धा सहित आराधना करते है।

मान्यता है कि पश्चिमी राजस्थान को बाबा ना कैवल भैरव राक्षस से मुक्ति दिलाई, वरन उन्होंने दलितो के उद्धार के कार्य भी आगे आकर किए। जिसके लिए उन्हें अपने ही परिवार का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने चमत्कारों से निचले तबकों के लोगों के उद्धार में महत्ती भूमिका निभाकर समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया।

 

 

जीवन परिचय 1352–1385 AD विक्रम सम्मत 1409–1442

  • रामदेवजी का ज़न्म बाडमेर के शिव तहसील के ऊडकासमेर गाँव में भाद्रपद शुक्ल दूज (द्वितीया) को हुआ था ।
  • रामदेव जी के पिता का नाम अजमाल जी (तंवर वंशीय) तथा माता का नाम मैणादे था ।
  • अजमाल की पत्नी मैणादे के श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से दो पुत्र बीरमदे और रामदेव पैदा हुए ।
  • भगवान द्वारिकाधीश की तपस्या के फलस्वरूप जन्म लेने के कारण 'लोक-कथाओं में दोनों भाईयों को बलराम और कृष्ण का अवतार माना गया है ।
  • ये अर्जुन के वंशज माने जाते है 
  • रामदेव जी 'रामसा पीर', 'रूणीचा रा धणी', "बाबा रामदेव', आदि उपनामों से भी जाने जाते है ।
  • रामदेवजी के गुरू का नाम बालीनाथ था ।
  • इनके भाई का नाम बीरमदे था ।
  • बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट (वर्तमान पाकिस्तान मे) सोढा, दलैसिंह की सुपुत्री नैतलदे/निहालदे के साथ हुआ ।
  • मेघवाल जाति की कन्या डालीबाईं को रामदेव जी ने धर्म-बहिन बनाया था । डालीबाईं ने रामेदव जी के समाधि लेने से एक दिन पूर्व समाधि ग्रहण की थी ।
  • रामदेव जी की सगी बहिन का नाम सुगना बाईं था ।

 

रामदेव जी के भक्त

  • रामदेव जी के मेघवाल जाति के भक्त रिखिया कहलाते हैं ।
  • हिन्दू रामदेव जी को कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान 'रामसा पीर' के रूप में इनको पूजते है ।
  • रामदेवजी के प्रिय भक्त यात्री जातरू कहलाते है ।
  • रामदेवजी द्वारा शोषण के विरूद चलाया जन-जागरण अभियान जाम्मा-जागरण कहलाता है ।

प्रतीक चिन्ह

  • रामदेव जी के प्रतीक चिन्ह के रूप में पगल्वे (चरण चिन्ह) बनाकर पूजे जाते है ।
  • रामदेव जी के भक्त इन्हें कपडे का बना घोड़। चढाते है ।
  • इनका का वाहन नीला घोडा था ।

प्रमुख  मंदिर

  • रामदेवरा (रूणेचा) जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में रामदेव जी का समाधि स्थल है ।
  • यहाँ रामदेव का भव्य मंदिर है तथा भाद्रपद , शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता है ।
  • रामदेव जी के मंदिरों को ' देवरा ' कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा, जिसको  ' नेजा ' कहा जाता है  फहराई जाती है ।
  • लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है ।
  • रामदेवजी के मेले का आकर्षण तेरहताली नृत्य है, जिसे कामडिया लोग प्रस्तुत करते है ।
  •  जोधपुर के पश्चिम में मसूरियां पहाडी , बिराटियां (पाली) , सूरताखेड़ा (चित्तौड़) तथा छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है ।
  • 'रामसरोवर की पाल' (रूणेचा) में समाधि ली तथा इनकी धर्म-बहिन 'डाली जाई' ने यहाँ पर उनकी आज्ञा से एक दिन पहले जलसमाधि ली थी । डाली बाईं का मंदिर इनकी समाधि के समीप स्थित है ।


परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण विशेष तथ्य

  • रामदेव जी ने परावर्तन नाम से एक शुद्धि अन्दोलन चलाया जो मुसलमान मने हिन्दुओं की शुद्धि कर उन्हें पुन हिन्दू धर्म में दीक्षित करना था ।
  • रामदेव जी हड़बूजी , पाबूजी और मल्लीनाथ जी के समकालीन थे । 
  • रूणेचा में स्थित रामदेव जी के समाधि स्थल को रामसरोवर की पाल के नाम से जाना जाता है ।
  • सुगना बाई का विवाह पुगलगढ़ के पडिहार राव विजय सिंह से हुआ । बीकानेर, जैसलमेर में रामदेवजी की फड़ ब्यावले भक्तों द्वारा बांची जाती है ।
  • रामदेव जी ने कामडिया पंथ चलाया था ।
  • कामडिया जाति की स्त्रियाँ तेरहताली नृत्य में निपुण होती है ।
  • रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा में अविश्वास प्रकट किया तथा जाति प्रथा का विरोध करते हुए वे हरिजनों को गले का हार, मोती और मूंगा बताते है ।
  • रामदेवजी ने पश्चिम भारत में मतान्तरण व्यवस्था को रोकने हेतु प्रभावी भूमिका निभाई थी ।
  • भैरव राक्षस, लखी बंजारा, रत्ना राईका का सम्बन्ध रामदेवजी से था ।
  • यूरोप की क्रांति से बहुत पहले रामदेवजी द्वारा हिन्दू समाज को दिया गया संदेश समता और बंधुत्व था ।
  • ' भाद्रपद शुक्ला द्वितीया 'बाबे री बीज' (दूज) के नाम से पुकारी जाती है तथा यही तिथि रामदेव जी के अवतार की तिथि के रूप में लोक प्रचलित है ।
  • रामदेव जी ही एक मात्र ऐसे देवता है, जौ एक कवि भी थे । इनकी रचना ' चौबीस वाणियां ' प्रसिद्ध है ।
  • रामदेव जी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को रात्रि जागरण किया जाता है, जिसे ' जम्मा ' कहते है ।
  • रामदेवजी का मेला साम्प्रदायिक सदभाव का सबसे बडा मेला है ।
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बाबा रामदेव जी के पर्चे

बाबा रामदेव जी के चमत्कारों को पर्चा कहा जाता है । पर्चा शब्द परिचय शब्द से बना है । परिचय से तात्पर्य है अपने अवतारी होने का परिचय देना । एसी मान्यता है की उन्होंने अपने जीवनकाल में २४ पर्चे दिए | प्रमुख पर्चे निम्न है –

1 भैरव राक्षस का वध  : भैरव नाम के एक राक्षस ने पोकरण में आतंक मचा रखा था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी के 'मारवाड़ रा परगना री विगत' नामक ग्रंथ में इस घटना का उल्लेख मिलता है।
भैरव राक्षस का आतंक पोखरण क्षेत्र में 36 कोष तक फैला हुआ था। यह राक्षस मानव की सुगं सूंघकर उसका वध कर देता था। बाबा के गुरु बालीनाथजी के तप से यह राक्षस डरता था, किंतु फिर भी इसने इस क्षेत्र को जीवरहित कर दिया था।  रामदेवजी ने उसका वध करके प्रजा को राहत दिलाई थी ।

2 मक्का के पीर : कहते हैं कि चमत्कार होने से लोग गांव-गांव से रुणिचा आने लगे। यह बात रुणिचा और आसपास के गांव के मौलवियों को नहीं भाई। उन्हें लगा की इस्लाम खतरे में है। उनको लगा कि मुसलमान बने हिन्दू कहीं फिर से मुसलमान नहीं बन जाएं तो उन्होंने बाबा को नीचा दिखाने के लिए कई उपक्रम किए। जब उन पीरों और मौलवियों के प्रयास असफल हुए तब उन्होंने यह बात मक्का के मौलवियों और पीरों से कही। वे  पीर मक्का से चलकर रुणिचा  जा पहुंचे। रामदेवजी बाबा ने उनकी आवभगत की और '‍अतिथि देवो भव:' की भावना से उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। बाबा के घर जब पांचों पीरों के भोजन हेतु जाजम बिछाई गई, तकिए लगाए गए, पंखे लगाए गए और सेवा-सत्कार के सभी सामान सजाए गए, तब भोजन पर बैठते ही एक पीर बोला कि अरे, हम तो अपने खाने के कटोरे मक्का ही भूल आए हैं। हम तो अपने कटोरों में ही खाना खाते हैं, दूसरे के कटोरों में नहीं, यह हमारा प्रण है। अब हम क्या कर सकते हैं? आप यदि मक्का से वे कटोरे मंगवा सकते हैं तो मंगवा दीजिए, वर्ना हम आपके यहां भोजन नहीं कर सकते। तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराए नहीं जाने देते। यदि आप अपने कटोरों में ही खाना चाहते हैं तो ऐसा ही होगा। इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया और जिस पीर का जो कटोरा था उसके सम्मुख रखा गया। इस चमत्कार (परचा) से वे पीर सकते में रह गए। जब पीरों ने पांचों कटोरे मक्का वाले देखे तो उन्हें अचंभा हुआ और मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर है। ये कटोरे तो हम मक्का में छोड़कर आए थे। ये कटोरे यहां कैसे आए? तब उन पीरों ने कहा कि आप तो पीरों के पीर हैं। पांचों पीरों ने कहा ‍कि आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से पूजेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्रीरामदेवजी को 'पीर' की पदवी मिली और रामदेवजी, रामापीर कहलाए।

3 रानी नेतल को परचा : एक बार रानी नेतलदे ने रंगमहल में रामदेवजी से पूछा- 'हे प्रभु! आप तो सिद्धपुरुष हैं, बताइए मेरे गर्भ में क्या है- पुत्र या पुत्री?' इस पर रामदेवजी ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में पुत्र है और उसका नाम 'सादा' रखना है। रानी का संशय दूर करने के लिए रामदेवजी ने अपने पुत्र को आवाज दी। इस पर अपनी माता के गर्भ से ही वह पु‍त्र बोल उठा। इस तरह उस शिशु ने अपने पिता के वचनों को सिद्ध कर दिया। 'साद' अर्थात आवाज के अर्थ से उनका नाम 'सादा' रखा गया। रामदेवरा से 25 किमी दूर ही उनके नाम से 'सादा' गांव बसा हुआ है।

4 मेवाड़ के सेठ दलाजी को परचा : कहते हैं कि मेवाड़ के एक गांव में दलाजी नाम का एक महाजन रहता था।। धन-संपत्ति तो उसके पास खूब थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। किसी साधु के कहने पर वह रामदेवजी की पूजा करने लगा। उसने अपनी मनौती बोली कि यदि मुझे पुत्र प्राप्ति हो जाएगी तो सामर्थ्यानुसार एक मंदिर बनवाऊंगा। इस मनौती के 9 माह पश्चात उसकी पत्नी के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ। एक बार जब सेठ रुणिचा जा रहे थे तो रास्ते में लुटेरे ने सेठ को मार दिया और सेठानी विलाप करती हुई रामदेवजी को पुकारने लगी।
अबला की पुकार सुनकर रामदेवजी अपने नीले घोड़े पर सवार होकर तत्काल वहां आ पहुंचे। आते ही रामदेवजी ने उस अबला से अपने पति का कटा हुआ सर गर्दन से जोड़ने को कहा। सेठानी ने जब ऐसा किया तो सर जुड़ गया और तत्क्षण दलाजी जीवित हो गया। बाबा उनको 'सदा सुखमय' जीवन का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।

5 सिरोही निवासी एक अंधे साधु को परचा : कहा जाता है कि एक अंधा साधु सिरोही से कुछ अन्य लोगों के साथ रुणिचा में बाबा के दर्शन करने के लिए निकला। सभी पैदल चलकर रुणिचा आ रहे थे। रास्ते में थक जाने के कारण अंधे साधु के साथ सभी लोग एक गांव में पहुंचकर रात्रि विश्राम करने के लिए रुक गए। आधी रात को जागकर सभी लोग अंधे साधु को वहीं छोड़कर चले गए। जब अंधा साधु जागा तो वहां पर कोई नहीं मिला और इधर-उधर भटकने के पश्चात वह एक खेजड़ी के पास बैठकर रोने लगा। रामदेवजी अपने भक्त के दुःख से द्रवीभूत हो उठे और वे तुरंत ही उसके पास पहुंचे। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर उसके नेत्र खोल दिए और उसे दर्शन दिए। उस दिन के बाद वह साधु वहीं रहने लगा। उस खेजड़ी के पास रामदेवजी के चरण (पघलिए) स्थापित करके उनकी पूजा  किया करता था। कहा जाता है वहीं पर उस साधु ने समाधि ली थी।

 

रामदेवरा (रुणिचा) कैसे पहुचे  :

राजस्थान के जेसलमेर जिले में यह गांव आता है। जेसलमेर तक देश के किसी भी कोने से ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। पोकरण या पोखरण, रामदेवरा से 12 किमी दूरी एवं जैसलमेर से 110 किमी दूरी पर स्थित है जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर पोकरण प्रमुख कस्बा हैं। लाल पत्थरों से निर्मित सुन्दर दुर्ग पोकरण में है। सन् 1550 में राव मालदेव ने इसका निर्माण कराया था। बाबा रामदेव के गुरुकुल के रूप में यह स्थल विख्यात हैं।

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                      Compiled By : Vijay Verma

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