चैत्र नवरात्रि
नवरात्री क्या है ?
अमावस्या की रात से नवमी तक
व्रत नियम के अनुसार चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम
सार्थक है। चूंकि यहां रात गिनते हैं इसलिए इसे नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा
जाता है।
वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि और
शारदीय नवरात्रि आती है। इसमें मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा की जाती है।
हालांकि, वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि भी आती है, लेकिन चैत्र
नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि की मान्यता ज्यादा है।
हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि को विशेष माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन
से हिंदू नव वर्ष यानि कि नव सम्वत्सर की भी शुरुआत होती है। इस बार संवत 2078
का
आरंभ 13 अप्रैल से होगा। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी आरंभ हो जाएगी। चैत्र
शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्रि प्रारंभ होंगे। इसी दिन घटस्थापना की जाती है। चैत्र
नवरात्रि के समय ही राम नवमी का पावन पर्व भी आता है। चैत्र नवमी के दिन भगवान राम
का जन्म हुआ था, इसलिए इसे राम नवमी कहा जाता है। नवरात्रों की प्रमुख तिथियों में
गणगौर पूजा 15 अप्रैल, दुर्गा सप्तमी 19 अप्रैल, दुर्गाष्टमी 20
अप्रैल
एवं श्रीरामनवमी 21 अप्रैल को होगी।
इस पर्व को शक्ति की उपासना के तौर पर
भी देखा जाता है। और इस दौरान मां दुर्गा की आराधना की जाती है।
माता के नौ रूप की पूजा :
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की नौ दिन पूजा-अर्चना की जाती है। मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए भक्त नौ दिन तक व्रत करते हैं। साथ ही नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के हर दिन देवी दुर्गा के एक रूप की पूजा होती है। देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि।
नवरात्री की तिथिया
13 अप्रैल- नवरात्रि प्रतिपदा- मां शैलपुत्री पूजा और घटस्थापना
14 अप्रैल- नवरात्रि द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
15 अप्रैल- नवरात्रि तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा
16 अप्रैल- नवरात्रि चतुर्थी- मांकुष्मांडा पूजा
17 अप्रैल- नवरात्रि पंचमी- मां स्कंदमाता पूजा
18 अप्रैल- नवरात्रि षष्ठी- मां कात्यायनी पूजा
19 अप्रैल- नवरात्रि सप्तमी- मां कालरात्रि पूजा
20 अप्रैल- नवरात्रि अष्टमी- मां महागौरी
21 अप्रैल- नवरात्रि नवमी- मां सिद्धिदात्री , रामनवमी
22 अप्रैल- नवरात्रि दशमी- नवरात्रि पारण
चैत्र नवरात्रि का महत्व
धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना
अलग ही महत्व है क्योंकि इस समय आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी
माया से ढ़का हुआ है जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचलन हो रहा है जो भोग और मोक्ष
देने वाली देवी हैं वह पृथ्वी पर होती है इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित
फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है। जहां तक बात है चैत्र
नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के
पहले दिन आदि शक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण
का काम शुरु किया था।
इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू
नववर्ष शुरु होता है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में
पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार
जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से
चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
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ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिषीय दृष्टि से चैत्र नवरात्र
का खास महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है।
सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने
के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही
अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।
चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की
गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति,
वर्षा,
कृषि
के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार
और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का
कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली
बनी रहे।
चैत्र नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व
हर नवरात्र के पीछे का एक वैज्ञानिक
आधार है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां होती
हैं। जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो
मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक
बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए, तन-मन को निर्मल रखने के लिए की जाने
वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों
वाला कहा गया है और, इसके
भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।
***
Compiled By :
Vijay Verma
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