श्री गुरु
गोबिन्द सिंह || Shree Guru
Gobind Singh
“चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ, सवा लाख से एक लडाऊं तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!”
गुरु गोबिंद सिंह के जीवन बारे में एक नजर में
जन्म नाम – गोबिंद राय सोधी
जन्म – 22
दिसम्बर, 1666, पटना
साहिब, भारत
माता पिता – माता गुजरी, गुरु तेग बहादुर
पूर्ववर्ती गुरु – गुरु तेग बहादुर
उत्तराधिकारी गुरु – गुरु ग्रन्थ साहिब
पत्नियों के नाम – माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन
बच्चों के नाम – अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह
मृत्यु – 7
अक्टूबर, 1708 हजुर
साहिब नांदेड, भारत
महान कार्य – खालसा पंथ के संस्थापक और जाप साहिब, चंडी दी वार, तव – प्रसाद सवैये, जफरनामा, बचित्तर नाटक, अकल
उस्तात, सिख चौपाई. के
लेखक
प्रारंभिक जीवन
वे 9वें सिख गुरु, गुरु
तेग बहादुर सिंह और गुजरी देवी के इकलौते बेटे थे, जिन्हें बचपन में सब उन्हें गोबिंद राय के नाम से पुकारते थे। करीब 4 साल तक वे पटना में ही रहे, वहीं उनका जन्म स्थान आज “तख़्त श्री
पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से मशहूर है। इसके बाद 4 साल की उम्र में वे अपने परिवार के
साथ पंजाब में लौट आए और फिर वो जब 6 साल के हुए तब हिमालय की शिवालिक घाटी में स्थित चक्क ननकी में रहने
लगे। आपको
बता दें कि चक्क ननकी की स्थापना उनके पिता एवं 9वें सिख गुरु, गुरु
तेग बहादुर सिंह ने की थी, जो
कि आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर
अपनी प्राथमिक शिक्षा लेने के साथ एक महान योद्धा बनने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने
की विद्या, लड़ने
की कला, तीरंदाजी करना
एवं मार्शल आर्ट्स की अनूठी कला सीखी। इसके अलावा पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया
और “वर श्री भगौती जी की” महाकाव्य की रचना की।
गुरु गोबिंद सिंह जी का सिखों के दसवें गुरु बनना
गुरु गोबिंद जी के पिता एवं नौवें सिख
गुरु, गुरु तेग बहादुर
सिंह ने धर्म-परिवर्तित कर मुस्लिम बनाए जाने के खिलाफ खुलकर विरोध किया था एवं
खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया था। जिसके बाद मुगल शासक औरंगजेब ने 11 नवम्बर 1675 को
भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर कटवा
(सिर कलम) दिया था। फिर
29 मार्च
1676 को, महज 9 साल की छोटी सी उम्र में गुरु गोबिंद सिंह जी को औपचारिक रूप से
सिखों का 10वां
गुरु बनाया गया था।
गुरु गोबिंद जी का विवाह
10वें सिख गुरु, गुरु
गोबिंद जी की तीन शादियां हुई थी,
उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में रहने वाले कन्या
जीतो के साथ हुआ था। इन दोनों को शादी के बाद जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन
संतान पैदा हुई थी। इसके
बाद माता सुंदरी से उनकी दूसरी शादी हुई थी और शादी के बाद इनसे उन्हें अजित सिंह
नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। फिर गुरु गोविंद जी ने माता साहिब से तीसरी शादी
की थी, लेकिन इस शादी
से उन्हें कोई भी संतान प्राप्त नहीं हुआ था।
खालसा पंथ की स्थापना
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज
उठाने एवं मानवता की गरिमा की रक्षा के लिए समर्पित महान योद्धाओं की मजबूत सेना
बनाने को ध्यान में रखते हुए बैसाखी के दिन साल 1699 में खालसा पंथ की
स्थापना की गई। खालसा
एक सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रुप है। गुरु
गोबिंद जी ने बैसाखी के दिन अपने सभी अनुयायियों को आनंदपुर में इकट्ठा किया और
पानी और पातशा (पंजाबी मिठास) का मिश्रण बनाया और इस मीठे पानी को “अमृत” कहा। इसके बाद
उन्होंने अपने स्वयंसेवकों से कहा जो कि स्वयंसेवक अपने गुरु के लिए अपने सर का
बलिदान देने के लिए तैयार है, वह
खालसा से जुड़े। इस तरह 5
स्वयंसेवक अपनी अपनी इच्छा से खालसा से जुड़ गए। जिसके बाद उन्होंने इन पांचों
स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत लिया एवं अपना नाम गुरु गोबिंद राय से
गुरु गोबिंद सिंह रख दिया।
सिख बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ के मूल सिद्धांतों की
स्थापना भी की जिन्हें गुरुगोबिंद जी के ‘5 ककार’ या ‘5
कक्के’ भी कहा जाता है। सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द साहब ने ही युद्द में
हमेशा तैयार रहने के लिए ‘5 ककार’
या ‘5 कक्के’ को सिखों
के लिए जरूरी बताया, इसमें
केश (बाल), कच्छा, कड़ा, कंघा, कृपाण
(छोटी तलवार) आदि शामिल हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी का योगदान
गुरु गोबिंद साहब जी ने ही सिखों के
नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी सिख धर्म के लोगों द्धारा चलाई जा रही है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख
गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था।
वाहेगुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरुओं के
उत्तराधिकारियों की परंपरा को खत्म किया, सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु
का प्रतीक बनाया।
सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद जी ने साल 1669 में मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध
करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।
सिख साहित्य में गुरु गोबिन्द जी के
महान विचारों द्धारा की गई “चंडी दीवार” नामक साहित्य की रचना खास महत्व रखती है।
गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने
अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं। इतिहासकारों की
माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के
सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा। लेकिन गुरु गोविंद जी ने
बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी। गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़ी गई
लड़ाईयां इस प्रकार है –
v
भंगानी का युद्ध (1688) (Battle of Bhangani)
v
नंदौन का युद्ध (1691) (Battle of Nadaun)
v
गुलेर का युद्ध (1696) (Battle of Guler)
v
आनंदपुर का पहला युद्ध (1700) (Battle of Anandpur)
v
निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702) (Battle of Nirmohgarh)
v
बसोली का युद्ध (1702) (Battle of Basoli)
v
चमकौर का युद्ध (1704) (Battle of Chamkaur)
v
आनंदपुर का युद्ध (1704) (Second Battle of Anandpur)
v
सरसा का युद्ध (1704) (Battle of Sarsa)
v
मुक्तसर का युद्ध (1705) (Battle of Muktsar)
vगुरु गोविंद जी की रचनाये
चंडी दी वार, जाप
साहिब, खालसा महिमा, अकाल उस्तत, बचित्र
नाटक, ज़फ़रनामा
गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु
मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद
उसके बेटे बहादुर शाह को उत्तराधिकरी बनाया गया था। बहादुर शाह को बादशाह बनाने
में गुरु गोबिंद जी ने मद्द की थी। इसकी वजह से बहादुर शाह और गुरु गोबिंद जी के
बीच काफी अच्छे संबंध बन गए थे। वहीं सरहद के नवाब वजीद खां को गुरु गोविंद सिंह
और बहादुर शाह की दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने दो पठानो से गुरु गोबिंद जी की हत्या की साजिश रखी
और फिर 7 अक्तूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने
अपनी आखिरी सांस ली। गुरु गोबिंद ने न सिर्फ अपने जीवन में लोगों को गरीबों की
मद्द करना, जीवों
पर दया करना, प्रेम-भाईचारे
से रहने का उपदेश दिया बल्कि समाज और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कई काम किए एवं
अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की। आज भी उनके अनुयायी उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं, और उनके ह्दय में अपने गुरु जी के
प्रति अपार प्रेम और सम्मान है।
गुरु गोबिन्द सिंह की कुछ रोचक बाते
बचपन में ही गुरु गोबिन्द सिंह के अनेक
भाषाए सीखी जिसमें संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी
और फारसी शामिल है। उन्होंने योद्धा बनने के लिए मार्शल आर्ट भी सिखा।
गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर के शहर में
जो की वर्तमान में रूपनगर जिल्हा पंजाब में है। उन्होंने इस जगह को भीम चंड से
हाथापाई होने के कारण छोडा और नहान चले गए जो की हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका है।
नहान से गुरु गोबिन्द सिंह पओंता चले
गए जो यमुना तट के दक्षिण सिर्मुर हिमाचल प्रदेश के पास बसा है। वहा उन्होंने
पओंता साहिब गुरुद्वारा स्थापित किया और वे वहाँ सिक्ख मूलो पर उपदेश दिया करते थे
फिर पओंता साहिब सिक्खों का एक मुख्य धर्मस्थल बन गया। वहाँ गुरु गोबिन्द सिंह पाठ
लिखा करते थे। वे तिन वर्ष वहाँ रहे और उन तीनो सालो में वहा बहुत भक्त आने लगे।
सितम्बर 1688 में जब गुरु गोबिन्द सिंह
19 वर्ष के थे तब उन्होंने भीम चंड,
गर्वल राजा, फ़तेह
खान और अन्य सिवालिक पहाड़ के राजाओ से युद्ध किया था। युद्ध पुरे दिन चला और इस
युद्ध में हजारो जाने गई। जिसमे गुरु गोबिन्द सिंह विजयी हुए। इस युद्ध का वर्णन
“विचित्र नाटक” में किया गया है जोकि दशम ग्रंथ का एक भाग है।
नवम्बर 1688 में गुरु गोबिन्द सिंह
आनंदपुर में लौट आए जोकि चक नानकी के नाम से प्रसिद्ध है वे बिलासपुर की रानी के
बुलावे पर यहाँ आए थे।
1699 में जब सभी जमा हुए तब गुरु गोबिंद
सिंह ने एक खालसा वाणी स्थापित की “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” ऊन्होने अपनी सेना
को सिंह (मतलब शेर) का नाम दिया। साथ ही उन्होंने खालसा के मूल सिध्दांतो की भी
स्थापना की।
गुरु गोबिन्द सिंह को गुरु ग्रंथ साहिब
के नाम से शोभित किया गया है क्योकि उन्होंने उनके ग्रंथ को पूरा किया था।
गुरु गोबिन्द सिंह सिक्खो के दसवें
धार्मिक गुरु थे। वे एक गुरु ही नहीं बल्कि एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर एवं निर्भीक योद्धा, अनुभवी लेखक और संगीत के पारखी भी थे।
सिर्फ 9 वर्ष की आयु में सिक्खों के नेता बने एवं अंतिम सिक्ख गुरु बने रहे।
सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु
गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने
इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया।
धरती
की सबसे मंहंगी जगह सरहिंद (पंजाब), जिला
फतेहगढ़ साहब में है, यहां
पर श्री गुरुगोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार किया गया था। सेठ
दीवान टोंडर मल ने यह जगह 78000
सोने की मोहरे (सिक्के) जमीन पर फैला कर मुस्लिम बादशाह से ज़मीन
खरीदी थी। सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़) बनती है। दुनिया की सबसे मंहंगी जगह खरीदने का
रिकॉर्ड आज सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है। आजतक दुनिया के इतिहास में
इतनी मंहंगी जगह कही नही खरीदी गयी।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने न सिर्फ अपने
महान उपदेशों के माध्यम से लोगों को सही दिशा दिखाई, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध
किया एवं खालसा पंथ की स्थापना की,
जो को सिख धर्म के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना के तौर पर अंकित
है।
उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया
है जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपना स्वयं
का आत्मकथा जिसका नाम रखा है बचितर नाटक.
सन 1684 में उन्होंने एक
महाकाव्य कविता भी लिखा जिसका नाम है “वर श्री भगौती जी की” यह काव्य हिन्दू माता
भगवती/दुर्गा/चंडी और राक्षसों के बिच संघर्ष को दर्शाता है।
गुरु गोबिंद जी ने लोगों को आपस में
प्रेम और भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहने का संदेश दिया।
ज़फरनामा
गुरु गोबिंद सिंह ने जब देखा कि मुग़ल
सेना ने गलत तरीके से युद्ध किया है और क्रूर तरीके से उनके पुत्रों का हत्या कर
दिया तो हथियार डाल देने के बजाये गुरु गोबिंद सिंग ने औरन्ज़ेब को एक जित पत्र
“ज़फरनामा” जारी किया।
गुरु गोबिंद सिंह की जयंती
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, गुरु
गोबिंद सिंह की जयंती हर साल दिसंबर या जनवरी में आती है। हालाँकि, गुरु
की जयंती का वार्षिक उत्सव नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होता है। इस साल, यह 20
जनवरी को है।
Important
fact about Sikh Religion : सिख धर्म से सम्बंधित प्रमुख तथ्य
Compiled by: vijay verma
Source : Web
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