Download Cyber Classes Android App from playstore

Skip to main content

Swami Vivekanand || स्वामी विवेकानंद

 

 

Swami Vivekanand || स्वामी विवेकानंद

उठो जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो’



पूरा नाम       :      नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त

जन्म          :      12 जनवरी 1863

जन्मस्थान      :      कलकत्ता (पं. बंगाल)

पिता          :      विश्वनाथ दत्त

माता          :      भुवनेश्वरी देवी

घरेलू नाम      :      नरेन्द्र और नरेन

मठवासी बनने के :      स्वामी विवेकानंद

बाद नाम       :     

भाई-बहन       :      9

गुरु का नाम    :      रामकृष्ण परमहंस

शिक्षा          :      1884 मे बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण

विवाह         :      विवाह नहीं किया

संस्थापक       :      रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन

फिलोसिफी      :      आधुनिक वेदांत, राज योग

साहत्यिक कार्य :      राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु, अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान

अन्य महत्वपूर्ण काम     :न्यूयार्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और भारत में अल्मोड़ा के पास ”अद्धैत आश्रम” की स्थापना।

कथन          :      “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”

मृत्यु तिथि      :      4 जुलाई, 1902

मृत्यु स्थान     :      बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत

 

प्रारंभिक जीवन :

महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने  कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे। वहीं विवेकानंद जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी जिन्होनें धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही उनको अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी। स्वामी विवेकानंद के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली।

युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी, वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही। वहीं आगे जाकर यही नरेन्द्र नाथ दुनियाभर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म, और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम  से प्रसिद्ध हो गए।

शिक्षा

·         1871   में उनका ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में एडमिशन कराया गया।

·         1877 में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था।

·         1879 में, उनके परिवार के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने।

·         1881 में उन्होनें ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की थी वहीं 1884 में उन्होनें कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी।

·         1884 में अपनी बीए की परीक्षा अच्छी योग्यता से उत्तीर्ण थी और फिर उन्होनें वकालत की पढ़ाई भी की।

·         स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण, गीता और हिन्दू शास्त्र वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे, और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे।

·         नरेंद्र ने David Hume, Immanuel Kant, Johann Gottlieb Fichte, Baruch Spinoza, Georg W.F. Hegel, Arthur Schopenhauer, Auguste Comte, John Stuart Mill और Charles Darwin के कामो का भी अभ्यास कर रखा था।

·         स्वामी विवेकानंद को बंगाली भाषा की भी अच्छी समझ थी उन्होनें स्पेंसर की किताब एजुकेशन का बंगाली में अनुवाद किया आपको बता दें कि वे  हर्बट स्पेंसर की किताब से काफी प्रभावित थे। जब वे पश्चिमी दर्शन शास्त्रियों का अभ्यास कर रहे थे तब उन्होंने संस्कृत ग्रंथो और बंगाली साहित्यों को भी पढ़ा।

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे और उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए। इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई।

रामकृष्ण मठ की स्थापना

इसके बाद रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई जिसके बाद नरेन्द्र ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। हालांकि बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेन्द्र नाथ ने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत लिया और वे नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द हो गए।

स्वामी विवेकानंद का भारत भ्रमण

महज 25 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और इसके बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्या, वाराणसी, आगरा, वृन्दावन, अलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे।


इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। इस दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की।

23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे जहां वह 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले।

विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो

1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी जिसका खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा था, अपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था।

उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई  इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए।

11 सितंबर 1893 में स्वामी जी द्वारा दिया गया इतिहासिक भाषण के कुछ अंश :

अमेरिका के बहनों और भाइयों…

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय बेहद प्रसन्नता से भर गया है. मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद कहूँगा और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका कृतज्ञता व्यक्त करता हूं.

मेरा धन्यवाद उन कुछ वक्ताओं के लिये भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूरपूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक ग्रहण करने का पाठ पढ़ाया है.

हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में ही स्वीकार करते हैं. मुझे बेहद गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के अस्वस्थ और अत्याचारित लोगों को शरण दी है.

मुझे यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृति याँ संभालकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर नष्ट कर दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी.

मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ , जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें प्यार से पाल-पोस रहा है. भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने अपने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है.

वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र समारोहों में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – जो भी मुझ तक आता है, चाहे फिर वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुँचते हैं.

सांप्रदायिकताएँ, धर्माधता और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी बार ही यह भूमि खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक दैत्य नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है.


मुझे पूरी आशा है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगे.

इस सम्मेलन की सभी मधुर बाते मुझे समय-समय पर याद आती रहेंगी. उन सभी का मै विशेष शुक्रियादा करना चाहता हु जिन्होंने अपनी उपस्थिति से मेरे विचारो को और भी महान बनाया.

बहोत सी बाते यहाँ धार्मिक एकता को लेकर ही कही गयी थी. लेकीन मै यहाँ स्वयं के भाषण को साहसिक बताने के लिये नही आया हु. लेकीन यहाँ यदि किसी को यह आशा है की यह एकता किसी के लिये या किसी एक धर्म के लिये सफलता बनकर आएँगी और दूसरे के लिए विनाश बनकर आएँगी, तो मै उन्हेंसे कहना चाहता हु की, “भाइयो, आपकी आशा बिल्कुल असंभव है.”

यदि विश्व धर्म सम्मेलन दुनिया को यदि कुछ दिखा सकता है तो वह यह होंगा- धर्मो की पवित्रता, शुद्धता और पुण्यता.

अध्यात्मिक कार्य

धर्म संसद खत्म होने के बाद अगले 3 सालों तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका में वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते रहे। वहीं अमेरिका की प्रेस ने स्वामी विवेकानंद को ”Cylonic Monik from India” का नाम दिया था।

इसके बाद 2 साल उन्होनें शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्राइट और बोस्टन में लेक्चर दिए । वहीं 1894 में न्यूयॉर्क में उन्होनें वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

आपको बता दें 1895 में उनके व्यस्तता का असर उनकी हेल्थ पर पड़ने लगा था जिसके बाद उन्होनें लेक्चर देने की बजाय योग से संबंधित कक्षाएं देने का निर्णय लिया था वहीं इस दौरान भगिनी निवेदिता उनकी शिष्य बनी जो कि उनकी प्रमुख शिष्यों में से एक थी।

वहीं 1896 में वे ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से मिले जिन्होनें स्वामी जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखी थी। इसके बाद 15 जनवरी 1897 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ इस समय वे काफी लोकप्रिय हो चुके थे और लोग उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद कोलकाता वापस लौटे और उन्होनें रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम बढ़ाना था।

साहित्य, दर्शन और इतिहास के विद्धान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा का सभी को कायल कर दिया था और अब वे नौजवानों के लिए आदर्श बन गए थे।

1898 में स्वामी जी ने Belur Math – बेलूर मठ की स्थापना की जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम प्रदान किया।

स्वामी विवेकानंद की दूसरी विदेश यात्रा

स्वामी विवेकानन्द अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर 20 जून 1899 को अमेरिका चले गए। इस यात्रा में उन्होनें  कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और संफ्रान्सिस्को और न्यूयॉर्क में  वेदांत सोसायटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में स्वामी जी पेरिस गए जहां वे ‘कांग्रेस ऑफ दी हिस्ट्री रीलिजंस’ में शामिल हुए। करीब 3 माह पेरिस में रहे इस दौरान उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वानी तरियानंद थे।

इसके बाद वे 1900 के आखिरी में भारत वापस लौट गए। इसके बाद भी उनकी यात्राएं जारी रहीं। 1901 में उन्होनें बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा की।

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु

4 जुलाई 1902 को महज 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

स्वामी विवेकानंद जी का योगदान

      स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी ज्ञान और दर्शन के माध्यम से लोगों में धर्म के प्रति नई और विस्तृत समझ विकसित की।

      विवेकानंद भाईचारे और एकता को महत्व देते थे इसलिए उन्होनें हर इंसान के लिए नया और विस्तृत नजरिया रखने की सीख दी।

      महापुरुष विवेकानंद ने सीख और आचरण के नए सिद्धांत स्थापित किए।

      विवेकानंद जी ने पूर्व और पश्चिम देशों को आपस में जोड़ने में अपना अहम योगदान दिया।

      स्वामी विवेकानंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारत के साहित्य को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई।

      स्वामी विवेकानंद ने लोगों को सांस्कृतिक भावनाओं के जरिए जोड़ने की कोशिश की।

      विवेकानंद अपनी पैदल भारत यात्रा के दौरान जातिवाद को देखकर बेहद आहत हुए थे जिसके बाद उन्होनें इसे खत्म करने के लिए नीची जातियो के महत्व को समझाया और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया।

      विवेकानंद जी ने भारतीय धार्मिक रचनाओं का सही अर्थ समझाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

      दुनिया के सामने विवेकानंद जी ने हिंदुत्व के महत्व को समझाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

      प्राचीन धार्मिक परम्पराओं पर नई सोच का समन्वय स्थापित किया।

स्वामी विवेकानंद जी की जयंती

स्वामी विवेकानंद के जन्म तिथि 12 जनवरी को राष्‍ट्रीय युवा दिवस – National Youth Day के रूप में मनाई जाती है। विवेकानंद जी ऐसी महान शख्‍सियत थे जिनका हर किसी पर गहरा प्रभाव पड़ा है। स्वामी विवेकानंद केवल एक संत ही नहीं, एक महान दार्शनिक, एक महान देशभक्त, विचारक और लेखक भी थे। स्वामी विवेकानंद जातिवाद, और धार्मिक आडम्बरों का जमकर विरोध करते थे इसके साथ वे साहित्य, दर्शन के विद्धान थे जिन्होनें भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशो में भी फैलाई इसके साथ ही हिंदुत्व को भी बढ़ावा दिया उन्होनें अपनी रचनाओं का प्रभाव पूरे देश में डाला और सम्पूर्ण युवा जगत को नई राह दिखाई।

प्रमुख पुस्तक

कर्म योग (1896)

राज योग (1896)

वेदांत दर्शन: ग्रेजुएट फिलोसोफिकल सोसाइटी से पहले एक पता (पहली बार 1896 में प्रकाशित)

कोलंबो से अल्मोड़ा के लिए व्याख्यान (1897)

वेदांत दर्शन: ज्ञान योग पर व्याख्यान (1902)

 

Compiled By : Vijay Verma

Read other Biography 


Comments

Post a Comment

If you have any doubt . then writes us

Popular posts from this blog

REET 2021 Exam News Update

  राजस्थान शिक्षक  भर्ती परीक्षा REET 2021 Update   download Cyber Classes Android APP  20-Sept-2021: REET EXAM 2021 के admit card  में    त्रुटि सुधार का लिंक जारी  माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर राजस्थान द्वारा REET exam 2021 के एडमिट कार्ड  में    त्रुटि सुधार का लिंक आयोग की वेबसाइट पर  दे दिया है    Click here for data correction in admit card   Latest Update-17-Sept-2021: REET EXAM 2021 के एडमिट card अपलोड  माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर राजस्थान द्वारा REET exam 2021 के एडमिट कार्ड आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं Click here for download admit card   Latest Update-18-June-2021-:8:00 PM-: EWS अभ्यर्थियों के लिए आवेदन फार्म पुन ओपन किये  Update 16-June-2021-:8:00 PM-:  #रीट परीक्षा 26 सितंबर 2021 को आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। EWS अभ्यर्थियों के लिए आवेदन 21 जून से 5 जुलाई तक लिए जाएँगे। बहुत जल्द माध्यमिक शिक्षा बोर्ड संशोधित विज्ञप्ति जारी करेगा। Update-09-June-2021-:8:00 PM-...

Rajasthan Computer Teacher Recruitment News

  Rajasthan Computer Teacher Recruitment 2021 News Update 28-Aug-2021:  वित्त विभाग के द्वारा कंप्यूटर अनुदेशक भर्ती को मिली मंजूरी  वित्त विभाग ने कंप्यूटर अनुदेशक भर्ती को नियमित करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है यह भर्ती 10453 पदों पर प्रस्तावित है  इससे  राजकीय विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों के माध्यम से कम्प्यूटर शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकेगी तथा बड़ी संख्या में युवाओं को कम्प्यूटर अनुदेशक के पद पर स्थायी रोजगार के अवसर मिल सकेंगे।   22-July-2021: कम्प्यूटर अनुदेशकों की नियमित भर्ती होगी  राज्य मंत्रिमंडल एवं मंत्रिपरिषद की बैठक में विद्यालयों के लिए कम्प्यूटर अनुदेशकों की नियमित भर्ती करने के लिए  सैद्धांतिक सहमति दी है जल्द ही होगी 10000 कंप्युटर अनुदेशक की भर्ती  19 June 2021: कम्प्यूटर शिक्षकों के नए कैडर के लिए 10,453 पदों का सृजन संविदा आधार पर आवश्यक तत्काल भर्ती के लिए स्वीकृति प्रदेश के राजकीय विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और विद्यार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से राज्य सरकार...

अभियन्ता दिवस || Engineer’s day

  अभियन्ता दिवस || Engineer’s day   अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) 15 सितम्बर को मनाया जाता हैं. यह दिन मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिवस हैं , जो कि एक महान इंजिनियर थे , इसलिए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इस दिन को इंजीनियर्स डे के नाम पर समर्पित किया गया. इंजिनियर डे के द्वारा दुनिया के समस्त इंजिनियरों को सम्मान दिया जाता है. जिस प्रकार   डॉक्टर को सम्मान देने के लिए    डॉक्टर्स डे   मनाया   जाता है ,   टीचरों को सम्मान देने के लिए टीचर डे   मनाया जाता है ,   बच्चों को सम्मान देने के लिए बाल दिवस   मनाया जाता है , माता को सम्मान देने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है , उसी तरह इंजिनियरों को भी एक दिन विशेष सम्मान दिया जाता है. आज के वक्त में दुनियाँ के हर क्षेत्र में इंजिनियर का नाम हैं. दुनियाँ की प्रगति में इंजिनियर का हाथ हैं फिर चाहे वो कोई भी फील्ड हो. तकनिकी ज्ञान के बढ़ने के साथ ही किसी भी देश का विकास होता हैं. इस तरह पिछले दशक की तुलना में...