Farmer Bill 2020 || किसान बिल 2020
केंद्र
सरकार ने किसानों की आय को बढ़ाने तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए एक नया
किसान बिल लाया गया है । जो किसानों की फसल, बाजार, फसल मूल्य तथा बाजार मूल्य आदि से
जुड़ा हुआ था। इस बिल को
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री
नरेंद्र सिंह तोमर ने 14 सितंबर,
2020 को लोकसभा में प्रस्तुत किया था। जिसे
5 जून, 2020 को अध्यादेश के रूप में विधेयक रखा गया था। जो लोकसभा में 17 सितंबर 2020 को तथा
जबकि राज्य
सभा ने 20 सितंबर 2020 इस विधेयक को पारित कर दिया और अंतिम रूप से राष्ट्रपति महोदय द्वारा
27 सितम्बर 2020 को हस्ताक्षर करके कानून का रूप दिया गया |
किसान
बिल में मुख्य रूप से तीन बिल है –
1 कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार-संवर्धन एवं सुविधा कानून
2 मूल्य आश्वासन पर
किसान (बंदोबस्ती और
सुरक्षा) समझौता और
कृषि सेवा
कानून:
3 आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 (Essential Commodities (Amendment) Bill 2020):
1 कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार-संवर्धन एवं सुविधा कानून
यह कानून
किसानों को देशभर में कहीं भी फसल बेचने
के लिए स्वतन्त्रता देता है। किसान इस बात के लिए भी स्वतन्त्र है कि वे अपनी फसल
मंडियों में आढ़तियों को बेचने के बजाय सीधा उत्पाद फर्मों एवं अन्य को बेचे।
सरकारी दावे:
इस कानून के
लागू हो जाने से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा, जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि
उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी. 'एक देश, एक
कृषि मार्केट' बनेगा. कोई अपनी उपज कहीं भी बेच
सकेगा. किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे, जिससे
बाजार की लागत कम होगी और उन्हें अपने उपज की बेहतर कीमत मिल सकेगी. इस कानून से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कंपनी, सुपर
मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री
कृषि उपज मंडी समिति (APMC) में
होने की शर्त हटा ली गई है. जो खरीद मंडी से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगेगा.
किसानों का डर:
जब किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को
रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल रहा है या नहीं. एमएसपी की गारंटी नहीं दी
गई है. किसान अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मांग रहे
हैं. वो इसे किसानों का कानूनी अधिकार बनवाना चाहते हैं, ताकि तय रेट से कम पर खरीद करने वाले जेल में डाले जा सकें.
इस कानून से किसानों में एक बड़ा डर यह भी है कि किसान व कंपनी के बीच विवाद
होने की स्थिति में कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकता. एसडीएम और डीएम ही
समाधान करेंगे जो राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं. क्या वे सरकारी दबाव से मुक्त
होकर काम कर सकते हैं?
व्यापारियों की शंका
व्यापारियों का कहना है कि सरकार के नए कानून में साफ लिखा है कि मंडी के अंदर फसल आने पर
मार्केट फीस लगेगी और मंडी के बाहर अनाज बिकने पर मार्केट फीस नहीं लगेगी. ऐसे में
मंडियां तो धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी. कोई मंडी में माल क्यों खरीदेगा. उन्हें
लगता है कि यह आर्डिनेंस वन नेशन टू मार्केट को बढ़ावा देगा. यदि किसान अपनी उपज
को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति (APMC/Registered Agricultural
Produce Market Committee) के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा
क्योंकि वे 'मंडी शुल्क' प्राप्त नहीं कर पायेंगे। यदि पूरा कृषि व्यापार मंडियों से बाहर चला
जाता है, तो कमीशन एजेंट बेहाल होंगे।
लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है,
किसानों और विपक्षी दलों को यह डर है कि इससे
अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित
खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।
2 मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा कानून:
यह बिल किसानों को सीधे स्वतंत्रता
देता है कि किसान बड़े उत्पादकों के साथ फसल की कीमत पहले से ही 'कॉन्ट्रैक्ट' कर तय कर सकते है कि वे उनको फसल पक जाने पर किस दाम पर बेचेंगे। सीधा
मतलब यह कि बिचौलियों या आढतियों की जरूरत ही नहीं।
सरकारी दावे:
इस कानून को सरकार ने कांट्रैक्ट फार्मिंग के मसले पर लागू किया है. इससे खेती का जोखिम कम होगा और किसानों की आय में सुधार होगा. समानता के आधार पर किसान प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम होगा. किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट तक पहुंच सुनिश्चित होगी. मतलब यह है कि इसके तहत कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. जिसमें बड़ी-बड़ी कंपनियां किसी खास उत्पाद के लिए किसान से कांट्रैक्ट करेंगी. उसका दाम पहले से तय हो जाएगा. इससे अच्छा दाम न मिलने की समस्या खत्म हो जाएगी. यह विपणन लागत को कम करके किसान की आय को बढ़ावा देता है।
Subscribe our youtube Channel
किसानों का डर:
अन्नदाताओं के लिए काम करने वाले संगठनों और कुछ विशेषज्ञों का कहना
है कि इस कानून से किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा. केंद्र सरकार
पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है. कांट्रैक्ट
फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करती हैं. उनके उत्पाद को खराब बताकर
रिजेक्ट कर देती हैं. दूसरी ओर व्यापारियों को डर है कि जब बड़े मार्केट लीडर उपज
खेतों से ही खरीद लेंगे तो आढ़तियों को कौन पूछेगा. मंडी में कौन जाएगा. इससे किसान का अपनी फसल को लेकर जो
जोखिम रहता है वह उसके उस खरीदार की तरफ जायेगा जिसके साथ उसने अनुबंध किया है।
3 आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 (Essential Commodities (Amendment) Bill 2020):
यह प्रस्तावित कानून आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन,
प्याज और आलू जैसी कृषि उपज को युद्ध,
अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि व प्राकृतिक आपदा जैसी 'असाधारण परिस्थितियों' को छोड़कर
सामान्य परिस्थितियों में हटाने का प्रस्ताव करता है तथा इस तरह की वस्तुओं पर
लागू भंडार की सीमा भी समाप्त हो जायेगी।इसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी
निवेश / एफडीआई को आकर्षित करने के साथ-साथ मूल्य स्थिरता लाना है। विरोध: इससे
बड़ी कंपनियों को इन कृषि जिंसों के भंडारण की छूट मिल जायेगी, जिससे वे किसानों पर अपनी मर्जी थोप सकेंगे।
सरकार का पक्ष: कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसानों के लिये फसलों
के न्यमनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था जारी रहेगी। इसके अलावा, प्रस्तावित कानून राज्यों के कृषि उपज विपणन
समिति (एपीएमसी) कानूनों का अतिक्रमण नहीं करता है। ये विधेयक यह सुनिश्चित करने
के लिये हैं कि किसानों को मंडियों के नियमों के अधीन हुए बिना उनकी उपज के लिये
बेहतर मूल्य मिले। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों
को उनकी उपज का बेहतर दाम मिले, इससे
प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और निजी निवेश के साथ ही कृषि क्षेत्र में अवसंरचना का विकास
होगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। यह बिल यह सुनिश्चित करता है कि बड़े उत्पादक किसानों से उत्पाद बड़ी
मात्रा में खरीद कर संग्रहण कर सकते हैं।
सरकार का दावा:
देश में ज्यादातर कृषि उत्पाद सरप्लस हैं, इसके बावजूद कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग के अभाव में किसान अपनी
उपज का उचित मूल्य पाने में असमर्थ रहे हैं. क्योंकि आवश्यक वस्तु अधिनियम की
तलवार लटकती रहती थी. ऐसे में जब भी जल्दी खराब हो जाने वाली कृषि उपज की बंपर पैदावार
होती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना
पड़ता था.
किसानों का डर: एक्ट में संशोधन बड़ी कंपनियों और बड़े व्यापारियों के हित में किया
गया है. ये कंपनियां और सुपर मार्केट सस्ते दाम पर उपज खरीदकर अपने बड़े-बड़े
गोदामों में उसका भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.
क्यों बना था यह एक्ट?
पहले व्यापारी किसानों से उनकी उपज को औने-पौने दाम में खरीदकर पहले
उसका भंडारण कर लेते थे. बाद में उसकी कमी बताकर कालाबाजारी करते थे. उसे रोकने के
लिए ही एसेंशियल कमोडिटी एक्ट बनाया गया था. जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि
उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक थी. लेकिन अब इसमें संशोधन करके सरकार
ने उन्हें कालाबाजारी करने की खुली छूट दे दी है.
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का झगड़ा क्या है?
भारत में Commission for Agriculture Cost & Price (CACP) आयोग गठित है जो यह सुनिश्चित करता है कि कैसी भी
परिस्थिति हो किसान को उसकी फसल की कम से कम एक निर्धारित कीमत तो मिलेगी ही।
हकीकत यह है कि आयोग की सिफारिश पर MSP सरकारें
ही तय करती है वो भी नैतिकता के नाते; इसके
लिए कोई विधेयक नहीं बना है।
अभी 23
कृषि उत्पादों पर किसानों को न्यूनतम समर्थन
मूल्य मिलता है जो निम्नानुसार है।
● गेहूँ आदि 7 अनाजों पर
● चना आदि 5 दालों पर
● मूंगफली आदि 7 तिलहनों पर
● कपास आदि 4 व्यावसायिक फसलों पर
किसान आन्दोनल 2020
इन तीनो कानूनों के खिलाफ देश भर के
किसान एकजुट होकर सरकार सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन कर रहे और इसी कड़ी में 8
दिसम्बर 2020 किसान संगठनो व विपक्ष पार्टियों द्वारा भारत बंद भी किया गया किसानों
ने तो कह दिया है कि वो तीनों नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की अपनी मांग से पीछे
नहीं हटेंगे. सरकार द्वारा भी वार्ता के प्रयास जारी है उम्मीद है की जल्दी ही
इसका कोई समाधान निकलेगा|
निष्कर्ष : में यह कहा जा सकता है की
कोरोना काल में केंद्र सरकार को इस प्रकार से आधे अधूरे कानून की कोई आवश्यकता
नहीं थी बिल को पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं की गए और ना नहीं राज्यों से कोई राय
ली गये जिसके कारन सरकार की सहयोगी पार्टियों ने भी खुलकर विरोध किया है किसानो की
मुख्य मांग MSP को लेकर है जिसको इसमें स्पस्ट नहीं
किया गया है.
जय जवान , जय किसान
जय किसान
ReplyDelete