नाग पंचमी
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण )
(अर्थ: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं।)
हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। हमारे यहां गाय की पूजा होती है। कई बहनें कोकिला-व्रत करती हैं। कोयल के दर्शन हो अथवा उसका स्वर कान पर पड़े तब ही भोजन लेना, ऐसा यह व्रत है। हमारे यहाँ वृषभोत्सव के दिन बैल का पूजन किया जाता है। वट-सावित्री जैसे व्रत में बरगद की पूजा होती है, परन्तु नाग पंचमी जैसे दिन नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंच जाती है।
नाग पंचमी कब मनाया जाता है
नाग पंचमी का पर्व सावन
माह की शुक्ल
पक्ष की पंचमी
तिथि को मनाया
जाता है। नाग
पंचमी के दिन
नागों की पूजा
की जाती है।
महाभारत में नागों
की उत्पत्ति का
वर्णन मिलता है।
हिंदू धर्म में
नागों को भी
देवता माना गया
है। महाभारत आदि
ग्रंथों में नागों
की उत्पत्ति के
बारे में बताया
गया है। नागपंचमी
के दिन आठ
नागों की पूजा
होती है। इनमें
अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म,
तक्षक, कुलीक, कर्कट और
शंख हैं।
नाग पंचमी का महत्व:
हिंदु धर्म में
नागों का विशेष
महत्व है। इनकी
पूजा पूरी श्रद्धा
से की जाती
है। बता दें
कि नाग शिव
शंकर के गले
का आभूषण भी
हैं और भगवान
विष्णु की शैय्या
भी। सावन के
महीने में हमेशा
झमाझमा बारिश होती है
और नाग जमीन
से बाहर आ
जाते हैं। ऐसे
में मान्यता के
अनुसार, नाग देवता
का दूध से
अभिषेक किया जाता
है और उनका
पूजन किया जाता
है। इससे वो
किसी को नुकसान
नहीं पहुंचाते हैं।
कहा तो यह
भी जाता है
कि अगर कुंडली
दोष हो तो
उसे दूर करने
के लिए भी
नाग पंचमी का
महत्व अत्यधिक होता
है।
भारत वर्ष में सर्प पूजन
भारत देश कृषिप्रधान देश हैं और है। सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है।
साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए।
साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता। उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है। साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने प्राण बचाने के लिए या अपना जीवन टिकाने के लिए यदि वह हमें डँस दे तो उसे दुष्ट कैसे कहा जा सकता है? हमारे प्राण लेने वालों के प्राण लेने का प्रयत्न क्या हम नहीं करते?
साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है। प्रत्येक मानव को जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।
हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी। यह शक्ति किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है।
शिव शंकर के गले में क्यों हैं नागराज वासुकी:
वासुकी को नागलोक
का राजा माना
गया है। वो
भगवान शिव के
परम भक्त थे।
ऐसा माना जाता
है कि शिवलिंग
की पूजा अर्चना
करने का प्रचलन
भी नाग जाति
के लोगों ने
ही आरंभ किया
था। शिवजी वासुकी
की श्रद्धा और
भक्ति से बेहद
खुश थे। इसी
के चलते उन्होंने
वासुकी को अपने
गणों में शामिल
कर लिया था।
पूजन विधि
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प्रातः उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ।
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पश्चात स्नान कर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है।
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इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।
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कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
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सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं।
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और फिर दीवाल पर बनाए गए नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।
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पश्चात आरती कर कथा श्रवण करना चाहिए।
विशेष :
पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर खिलाई व दूध पिलाया जाता है। कहीं-कहीं सावन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है।
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इस दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिए।
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बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।
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नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
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ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।
Create By VIJAY VERMA
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